क्या भारत के गांवों में रोजगार की गारंटी अब खत्म होने वाली है? संसद द्वारा पारित नया ‘विकसित भारत – ग्रामीण रोजगार और आजीविका मिशन गारंटी’ (VB-G RAM G) विधेयक, जिसे आम भाषा में ‘जी-राम-जी’ बिल कहा जा रहा है, ने एक नई बहस छेड़ दी है। इसे सरकार ‘विकसित भारत’ की नींव बता रही है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं और संविधान विशेषज्ञों के लिए यह ग्रामीण भारत की ‘लाइफलाइन’ काटने जैसा है।
यह बिल सिर्फ एक योजना का नाम बदलना नहीं है, बल्कि उस ‘अधिकार’ (Right to Work) को कमजोर करना है जिसे मनरेगा ने दो दशकों तक सुरक्षित रखा था। क्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन रोजगार देने का वादा एक सुनहरी हकीकत है या इसके पीछे कोई गहरा राज छिपा है? आज हम इस लेख में ‘द हिंदू’ और विशेषज्ञों की राय के आधार पर इस कानून की परतों को खोलेंगे और जानेंगे कि आखिर क्यों इसे लेकर इतनी चिंता जताई जा रही है।
क्या ‘अधिकार’ अब ‘योजना’ बनकर रह जाएगा?
मनरेगा (MGNREGA) की सबसे बड़ी ताकत उसका कानूनी ढांचा था। यह सरकार पर बाध्यता थी कि अगर काम मांगा गया, तो उसे देना ही होगा, वरना बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। लेकिन नए ‘जी-राम-जी’ बिल में इस ‘मांग-आधारित’ (Demand-driven) मॉडल को ‘बजट-आधारित’ (Budget-driven) मॉडल में बदलने की आशंका है।
1. केंद्रीय फंडिंग का पेंच
विशेषज्ञों का मानना है कि मनरेगा में केंद्र सरकार 100% मजदूरी देती थी। लेकिन नए बिल में 60:40 (केंद्र:राज्य) का अनुपात प्रस्तावित है।
- बड़ा झटका: जो राज्य पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं (जैसे बिहार, ओडिशा), वे अपनी जेब से 40% हिस्सा कैसे देंगे? डर यह है कि राज्य सरकारें फंड की कमी का हवाला देकर रोजगार देना कम कर सकती हैं। यह सीधे तौर पर मजदूर के पेट पर लात मारने जैसा हो सकता है।
2. 60 दिनों का ‘नो-वर्क’ पीरियड: खेत मजदूरों का क्या होगा?

इस बिल का एक विवादास्पद पहलू है – ‘सीजनल पॉज’ (Seasonal Pause)। यानी बुवाई और कटाई के समय मनरेगा का काम रोका जा सकता है ताकि किसानों को मजदूर मिल सकें।
- सवाल: लेकिन उन भूमिहीन मजदूरों का क्या, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है? क्या वे इन दो महीनों में भूखे रहेंगे? यह प्रावधान जमींदारों के पक्ष में तो दिखता है, लेकिन सबसे गरीब तबके के खिलाफ जा सकता है।
संविधान और नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 और अनुच्छेद 41 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) स्पष्ट रूप से कहते हैं कि राज्य को अपने नागरिकों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधन सुनिश्चित करने चाहिए।
मनरेगा इसी संवैधानिक भावना का प्रतीक था। यह केवल एक ‘स्कीम’ नहीं थी, बल्कि संविधान के वादों को पूरा करने का एक हथियार था। आलोचकों का कहना है कि नए बिल के कड़े प्रावधान और जटिलताएं इस संवैधानिक आत्मा को चोट पहुंचा सकती हैं। जब रोजगार पाना मुश्किल हो जाएगा, बायोमेट्रिक और ऐप-आधारित हाजिरी जैसी शर्तें लगा दी जाएंगी, तो क्या गरीब अनपढ़ मजदूर अपने हक के लिए लड़ पाएगा?
125 दिन का रोजगार: हकीकत या छलावा?
कागज पर देखें तो 100 दिन की जगह 125 दिन का रोजगार एक ‘खुशखबरी’ लगती है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होगा?
- हकीकत: मनरेगा के तहत भी 100 दिन का लक्ष्य बहुत कम परिवार पूरा कर पाते थे, क्योंकि फंड की कमी रहती थी। अब जब राज्यों पर वित्तीय बोझ डाला जा रहा है, तो क्या वे 125 दिन का काम दे पाएंगे?
- खतरा: डर यह है कि यह आंकड़ा सिर्फ फाइलों में न रह जाए। बिना पर्याप्त बजट आवंटन के, दिनों की संख्या बढ़ाना केवल एक चुनावी जुमला साबित हो सकता है।

मनरेगा: ग्रामीण भारत की रीढ़ (Factual Insight)
मनरेगा दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है। इसने न केवल अकाल और सूखे के दौरान लोगों को बचाया, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक आजादी भी दी। कोविड-19 महामारी के दौरान जब शहर बंद हो गए थे, तो यही मनरेगा करोड़ों प्रवासी मजदूरों का एकमात्र सहारा बना था। इसे कमजोर करना ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ने जैसा हो सकता है।
इसे और बेहतर समझने के लिए ये विडियो देखें :
निष्कर्ष (Conclusion)
‘जी-राम-जी’ बिल एक दोधारी तलवार है। जहां इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल निगरानी पर जोर दिया गया है, वहीं इसकी फंडिंग और जटिल शर्तें गरीबों को सिस्टम से बाहर कर सकती हैं। यह बदलाव ‘अधिकार’ से ‘दया’ की ओर जाने जैसा महसूस होता है।
भविष्य में, अगर सरकार पर्याप्त बजट नहीं देती है और राज्य सरकारें हाथ खड़े कर देती हैं, तो 125 दिनों का वादा धरा का धरा रह जाएगा। अब देखना यह है कि क्या यह ‘विकसित भारत’ का सपना पूरा करेगा या फिर ग्रामीण भारत को नए संकट में धकेल देगा। नागरिकों और विपक्ष को इसकी निगरानी करते रहना होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ Section)
1. जी-राम-जी (G-RAM-G) बिल क्या है?
यह एक नया कानून है जो पुराने मनरेगा (MGNREGA) एक्ट की जगह लेगा। इसका पूरा नाम ‘विकसित भारत – ग्रामीण रोजगार और आजीविका मिशन गारंटी’ है। इसका उद्देश्य ग्रामीण रोजगार को टिकाऊ संपत्ति निर्माण से जोड़ना है।
2. क्या अब मनरेगा जॉब कार्ड रद्द हो जाएंगे?
नहीं, पुराने जॉब कार्ड मान्य रहेंगे, लेकिन उन्हें नए सिस्टम के तहत अपडेट किया जा सकता है। सरकार ने कहा है कि प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाएगा।
3. नए बिल में रोजगार के कितने दिन मिलेंगे?
इस बिल में ग्रामीण परिवारों को एक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के रोजगार की गारंटी का प्रस्ताव है, जो पहले 100 दिन था।
4. ‘नो-वर्क पीरियड’ (No-Work Period) क्या है?
नए कानून के तहत, राज्य सरकारें कृषि के पीक सीजन (बुवाई/कटाई) के दौरान 60 दिनों तक रोजगार गारंटी योजना को रोक सकती हैं। इसका उद्देश्य खेतों में मजदूरों की कमी को पूरा करना बताया गया है।
5. क्या मजदूरी (Wage Rate) बढ़ेगी?
बिल में मजदूरी दरों को समय-समय पर संशोधित करने का प्रावधान है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसे महंगाई भत्ते (CPI-AL) से कैसे जोड़ा जाएगा। भुगतान पूरी तरह से आधार-लिंक्ड बैंक खातों (DBT) में होगा।
6. विपक्ष इस बिल का विरोध क्यों कर रहा है?
विपक्ष का कहना है कि यह बिल राज्यों पर वित्तीय बोझ (40% हिस्सा) डालता है, ‘अधिकार’ के ढांचे को कमजोर करता है, और सीजनल रोक के जरिए मजदूरों की आजीविका को खतरे में डालता है। इसके अलावा, महात्मा गांधी का नाम हटाने पर भी आपत्ति है।
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